विशालगढ़ का राजदरबार। विक्रम और सभी मंत्री राजनर्तकी अंगना के आने की प्रतीक्षा में थे। पर उसको आने में थोड़ा समय था। सो मन बहलाने के लिए विक्रम ने बांके को टोका।
विक्रम : और भाई बांके सब ठीक। बाल बच्चे सब बढ़िया।
बांके : क्या महाराज! सुबह सुबह ट्रोल कर रहे हो। आपको तो पता है न मैं अब तक कुवांरा हूँ। बाल बच्चे कहाँ से होंगे।
विक्रम : यार बांके शादी तो तुम्हारी कई बार हो चुकी है पर तुमने कुंवारा का लेबल अब तक चिपका रखा है जैसे राहुल ने युवा नेता की। बाई द वे ये ट्रोल क्या होता है?
बांके : वो जो हम आपकी मोटी तोंद की प्रशंसा कर जो भिगो भिगो के जूते मारते है न उसे ही ट्रोल करते हैं महाराज।
विक्रम : तुम्हारा मतलब जो हम तुम्हारे सिकड़ी शरीर और बोदी का मजाक उड़ा कर तुमको जलील करते हैं। समझा समझा। बड़ी इंट्रेस्टिंग चीज है ये ट्रोल करना तो।
बांके : ये गलत बात है महाराज। मेरी इज्जत पर ndtv की स्क्रीन की तरह कालिख पोतना जरूरी होता है क्या?
विक्रम : अरे गुस्सा क्यों होते हो प्यारे बांकु। तुम तो मेरे लिए वैसे ही हो जैसे केजरी की जबान पर मोदी।
नारा मंत्री : इसी बात पर बोलो मोदी जी इस्तीफा दोsss।
अभी ये बहस आगे बढ़ती तभी अंगना टेढ़ावत ने दरबार में प्रवेश किया। सबका ध्यान उस बहस से ऐसे हट गया जैसे यूपी चुनाव के बाद बिजली का आना हट गया हो।
विक्रम : आइये आइये अंगना जी। हम सब आपका ही इंतजार कर रहे थे।
अंगना : आज मैं राजनर्तकी बन कर नहीं आई महाराज बल्कि एक शहीद की बेटी बन कर आई हूँ।
विक्रम : शहीद की बेटी? हम समझे नहीं।
बांके : अंगना जी के पिताजी सनकीपुर से हुए युद्ध में शहीद हो गए थे।
विक्रम : ओह हमें खेद है अंगना जी आपके पिता सनकीपुर वालों की सनक की वजह से मारे गए।
अंगना : नहीं! उनको सनकीपुर की सनक ने नहीं बल्कि युद्ध ने मारा है।
विक्रम : हाँ हाँ युद्ध के कारण ही। पर युद्ध भी तो सनकीपुर वालों ने ही छेड़ा था न।
अंगना : तो क्या हुआ? वो लोग तो हैं ही सनकी पर विशालगढ़ को क्या हुआ। वो तो शांतिप्रिय राज्य है। उनको तो युद्ध नहीं करना चाहिए।
विक्रम : अरे अब वो लोग हमारे राज्य पर आक्रमण करेंगे तो हम क्या कर सकते हैं।
अंगना : वो सब मुझे नहीं पता मुझे तो बस सनकीपुर और विशालगढ़ के बीच शांति चाहिए। आप बस चलाओ ट्रेन चलाओ पानी दो राशन दो कुछ भी करो।
विक्रम : बांके ये अंगना जी कैसी बहकी बहकी बातें कर रही है।
बांके : वो क्या है न आज विशालगढ़ लंपट विश्वविद्यालय के कुछ लंपट छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाये तो इसपर कुछ राष्ट्र भक्त छात्रों ने उनको कूट दिया। कूटे गये छात्रों में से कुछ अंगना जी के करीबी थे। जिसके कारण अंगना जी ने भावुकता में आकर राष्ट्रभक्त छात्रों के विरोध में बयान दे दिया और उसके बाद उनकी ट्रॉलिंग शुरू हो गई।
विक्रम : क्या कहा छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाये? ये तो एंटी नेशनल एक्ट हो गया।
अंगना : एंटी नेशनल नारे देना एंटी नेशनल थोड़े ही हो गया। ये तो फ्रीडम ऑफ़ स्पीच है हमारा। हम देश को गाली दें या न दें इसकी आजादी तो हमको होनी ही चाहिए। और वैसे भी एंटी नेशनल नारे देना तो अब फैशन में है। इससे कम टाइम में पॉपुलरिटी मिलती है। और बड़े बड़े लोगों का सपोर्ट भी मिलता है।
विक्रम : बांके ये हमारे छात्रों को क्या हो गया है। अगर ये लोग ही राज्य के टुकड़े करने की बात करेंगे तो राज्य का क्या होगा।
बांके : अब छात्रों को पढ़ाई लिखाई से हटवा कर पॉलिटिक्स करवाओगे तो यही सब होगा न महाराज।
नारा मंत्री : इसी बात पर बोलो कन्हैया की मैया की…
अंगना : वो सब छोडो महाराज और ये बताओ कि विश्विद्यालय के कम्युनल छात्रों की गुंडागर्दी का सोलुशन निकालोगे या नहीं। ताकि यहाँ के सेक्युलर छात्र भयमुक्त रह सकें।
विक्रम : ये कम्युनल और सेक्युलर किसको बोल रही है बांके।
बांके : आजकल समानता की बात करने वालों और भेदभाव का विरोध करने वालों को कम्युनल और देश को बाँटने की बात करने वालो और राज्य का गुणगान न करने वालों को सेक्युलर बोलते हैं महाराज।
विक्रम : ये तो बहुत बड़ी विडंबना है बांके इस राज्य की। अब हम क्या करें?
बांके : करना क्या है महाराज। यहाँ प्रजातंत्र थोड़े ही हैं कि देशद्रोहियों को सबक सिखाने पर संसद ठप्प कर देंगे। या मिडिया का विधवा विलाप शुरू हो जायेगा। जो करना है बिंदास कीजिये। अगर उनको देश विरोधी नारे लगाने की आजादी चाहिए तो हमको भी कूटने की आजादी चाहिए। लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
नारा मंत्री : इसी बात पर बोलो हमको चाहिए आजादी कूटने की आजादी।